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गीत (निशा) 16-14

*गीत*(निशा)16/14
नहीं निशा यदि होती जग में,होता नहीं प्रभात कभी,
बिना प्रभात न जग को मिलती,जीवन की सौगात कभी।
तिमिर घिरा ब्रह्मांड रहे भी ,एक-अकेला-वीराना-
जीव-जंतु बिन सूना-सूना, हो न ब्रह्म की बात कभी।।
                                          नहीं निशा यदि...........।। बिन रजनी के रजनीकांत,पूजनीय कैसे होता?
निज प्रकाश-किरणों से दिनकर,कैसे भूमंडल धोता?
नहीं रात्रि यदि होती तो ये तारे कभी नहीं दिखते-
ख़ुद प्रकाश में दिखलाने की,सके न हो औक़ात कभी।।
                                  नहीं निशा यदि............।।
देती राहत रात मात्र ही,जलचर-थलचर-नभचर को,
धरती से अंबर तक मिलता,सुख-सुक़ून हर वपुधर को।
अर्जित करते सब हैं प्राणी,सोकर ही नव क्षमता को-
कभी न कोई जीवन पाता, अगर न होती रात कभी।।
                              नहीं निशा यदि................।।
परम पवित्र पूजा की बेला,घड़ी है यह अरदास की,
यही बाइबिल औ क़ुरान की,आयतों के अभ्यास की।
यूँ तो हैं फँस जाते भौंरे,रात कमल-पंखुड़ियों में-
मुक्त करे प्रभात कर रजनी,होय न प्राणाघात कभी।।
                            नहीं निशा यदि..................।।
पूनम की रजनी को चंदा,मिलता गले समुंदर से,
बाँह पसारे सिंधु मिले भी,मुदित मना अभ्यंतर से।
चित्ताकर्षक-मधुर-मनोहर, संगम कैसे होता ये?
यदि रजनी निज आँचल ताने,देती नहीं युँ साथ कभी।।
                      नहीं निशा यदि.....................।।
करे संयमी निशा-जागरण,जन-साधारण सोते हैं,
संत-संयमी पाएँ सदगति, मूरख जन फल खोते हैं।
गीता-ज्ञान यही है जिसने,जाना वही सयाना है-
जल-सिंचन बिन जग में तरु पर,नहीं उगे फल-पात कभी।।
नहीं निशा यदि होती जग में,होता नहीं प्रभात कभी।।
                        © डॉ. हरि नाथ मिश्र
                           9919446372

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7 Comments

बहुत ही सुंदर और बेहतरीन,,, संदेश देती हुई रचना

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Abhinav ji

17-Feb-2023 09:00 AM

Very nice 👍

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अदिति झा

17-Feb-2023 01:12 AM

Nice 👍🏼

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